
श्रीमते रामानुजाय नमः
भगवद भागवद आचार्य कैंकर्य पाएयम श्री बिष्णु चित्त स्वामी जी १२ वर्ष तक भी तुलसी फूल से पुजा भी बालमुन्द्र भगवान का किये। सूरखी हुई । तुलसी उखाड़ रहे थे तुलाती से एक कन्या प्रगट हुई वही कन्या बडी हुई। विष्णु चित्त स्वामी एक दिन बाजार से माला लाये। धरमे दिवाल पर टांग दिये स्नान करने चले गये समय पाकर उस कन्या ने पहन लिये। उतने मे स्नान करके वह विष्युचित्त स्वामी आ गये शिद्धता से माला उतार कर रख दिये। कुतारतें समय माला में कन्या के बाल रहगया था। विद्युत चित स्वामी को देखकर घबडा गई।


फिर वह माला विष्णु चितस्वामी ने प्रभु को अर्पण न कर वाजार से माला लाकर भगवान को अर्पण किये। भगवान को पहनाते ही वह माला टूट गई। दुमरा तिसरा माला टूट गई। बिब्यु चित्त स्वामी रोने लगे मैं इतना अभागाई प्रभु मेटी माला नही धारण कर रहे है।। फिर आकाश वामी हुई। हे बिब्यु क्ति जो आपकी कन्या तुलसी से प्रगट हुई है। वही माला लावो। लाकर पहनाया गया। नहीं दूस। गोदा कन्या को पत्ता लगा। तो कन्या ने सोचा हमारी पहनी हुई माला को प्रभु ने स्वीकार किया है। तो हमे भीखीकारल करेंगे। आप श्री ने यह सोचकर १ माह का व्रत किया। कावेरी नदी को यमुना मानकर प्रातः स्नान करके मीठ । तीखा का भोग लगाया


तीसने दिन मूर्ति भगवान की उसमें कन्या समा गई।
उही समय से भारत में रामानुज सम्प्रदाय वालो के द्वारा १७ दिसम्बर से ११ जनवरी तक प्रातः काल ५को मंगला ६-३० श्रीगार आरती करके २१ घडा ५१ घड़ा या 1१०० घड़ मीठा श्रीरान्न का भोग लगाकर मन्दिये बॉच जाता है। बद्रीनारायण मन्दिर डभोई से भी यह उत्सव बडे धुम धाम से भाया जाता ही • ११ वा. अन्तिम दिन कल्याण उत्सव के रूप में मनाया जाता है। जिसको गुजरान लग्नोत्सव कहते है।
